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मैत्री की राह दिखाने को
सबको सुमार्ग पे लाने को
दुर्योधन को समझाने को
भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान् हस्तिनापुर आये
पांडव का संदेसा लाये
"हो न्याय अगर तो आधा दो
और उसमे भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पांच ग्राम
रखों अपनी धरती तमाम
हम वही ख़ुशी से खाएँगे
परिजन पर असि न उठाएंगे" ( असि - Asi - Arms/Weapons)
दुर्योधन वह भी दे न सका
आशीष समाज की ले न सका
उल्टे हरी को बांधने चला
जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर आता हैं (मनुज - Manuj - Descendents of manu, mankind)
पहले विवेक मर जाता हैं
हरी ने भीषण हुंकार किया
अपना स्वरुप विस्तार किया
डगमग डगमग दिग्गज डोले
भगवान् कुपित होकर बोले
"ज़ंजीर बढा अब साध मुझे
हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय हैं
ये देख पवन मुझमे लय हैं
मुझमे विलीन झंकार सकल
मुझमे लय हैं संसार सकल
अमरत्व फूलता हैं मुझमे
संसार झूलता हैं मुझमे
उदयाचल मेरे दीप्त भाल
भूमंडल वक्षस्थल विशाल
भुज परिधि बांध को घेरे हैं (परिधि - circumference of universe)
मैनाक मेरु पग मेरे हैं (मैनाक मेरु - legendary mountains in Indian mythology)
दीप्ते जो ग्रह नक्षत्र निकर
सब हैं मेरे मुख के अन्दर
दृक हो तो दृश्य अखंड देख
मुझमे सारा ब्रह्माण्ड देख
चराचर जीव जग क्षर-अक्षर
नश्वर मनुष्य सृजाती अमर
शत कोटि सूर्य शत कोटि चन्द्र
शत कोटि सरित्सर सिन्धु मंद्र
शत कोटि ब्रह्मा विष्णु महेश
शत कोटि जलपति जिष्णु धनेश (जिष्णु - Jishnu - Victorious)
शत कोटि रुद्र शत कोटि काल
शत कोटि दंड धर लोकपाल
ज़ंजीर बढा कर साध इन्हें
हाँ हाँ दुर्योधन बाँध इन्हें
भूतल अतल पाताल देख
गत और अनागत काल देख
यह देख जगत का आदि सृजन
यह देख महाभारत का रण
मृतकों से पटी हुई भू हैं
पहचान कहाँ इसमें तू हैं !!!
अम्बर का कुंतल जाल देख
पद के नीचे पाताल देख
मुट्ठी में तीनो काल देख
मेरा स्वरुप विकराल देख
सब जन्म मुझिसे पाते हैं
फिर लौट मुझिमे आते हैं
जिव्हा से कढ़ती ज्वाल सघन
साँसों से पाता जन्म पवन
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर
हंसने लगती हैं सृष्टि उधर
मैं जभी मूंदता हूँ लोचन
छा जाता चारों ओर मरण
बाँधने मुझे तो आया हैं
ज़ंजीर बड़ी क्या लाया हैं ??
यदि मुझे बांधना चाहे मन
तो पहले बाँध अनंत गगन
शुन्य को साध न सकता हैं
वह मुझे बाँध कब सकता हैं ???
हित-वचन नहीं तुने माना
मैत्री का मूल्य न पहचाना
तो ले अब मैं भी जाता हूँ
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा
जीवन जय या की मरण होगा
टकराएंगे नक्षत्र निकर
बरसेगी भू पर वन्ही प्रखर (वन्ही - Wanhi - Fire)
फन शेषनाग का डोलेगा
विकराल काल मूंह खोलेगा
दुर्योधन रण ऐसा होगा
फिर कभी नहीं जैसा होगा
भाई पर भाई टूटेंगे
विष बाण बूँद से छूटेंगे
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे
वायस शृगाल सुख लूटेंगे (शृगाल - Shrigaal - Fox, Hyena)
आखिर तू भूशायी होगा
हिंसा का परदायी होगा"
थी सभा सन्न सब लोग डरे
चुप थे या थे बेहोश पड़े
केवल दो नर ना अघटे थे
धृतराष्ट्र विदुर सुख पाते थे
कर जोड़ खड़े प्रमुदित निर्भय
दोनों पुकारते थे जय जय ......
- कृष्ण की चेतावनी (Warning of Krishna), from epic रश्मिरथी (rashmi-rathi - Charioteer of light) by the legendary poet रामधारी सिंह "दिनकर"....
This is one of the supreme moments in the life of Krishna and is only epitomized by his monumental failure on this very moment. In this moment of his life, Krishna reaches a monumental and divine heights (other moment being discourse of Geeta, of course). He became famous for rising so high in life on such occasions, but tragically, although he became known, respected and feared, he failed on his primary objective, that was to avert the disastrous war. Krishna used all his knowledge, his powers, his skills of persuasion to avert the war in this episode of Mahabharat. But, all his efforts proved to be utter failure in changing the heart of Duryodhan and averting the disaster.
He even revealed to the world for the first time that he is God himself and has come upon the earth to uplift the righteous. But even this proved ineffectual in persuading Duryodhan to see the reason. And most tragic part of his life is that he was accused of not doing enough to avert the war by Gaandhari (mother of Duryodhan) after the war ended. Gaandhari cursed him that he will suffer the same fate as she and her family suffered, that is living long enough to see the self-destruction of his own family and clan and city.
This curse fructified 36 years after the war, when his entire clan killed in a civil war. All his brothers, children and rest of his kin killed each other after consuming too much of alcohol. Krishna lived to see everyone in his family whom he so dearly loved, killing off each other.
And few days later, Krishna was mistakenly shot by an old hunter's arrow while resting and meditating in forest. Krishna died alone in jungle, with none of his family and loved ones around and alive, in perfect state of equianimity and bliss. His job on this earth was over !!! :-)
** About the poem -This is one of the famous poems in Hindi literature.Widely cited and quoted by literati and common man alike.
Most infamously, याचना नहीं अब रण होगा, जीवन जय या की मरण होगा -this particular line from this poem was quoted by Pravin Mahajan, before murdering his brother Pramod Mahajan. What followed thereafter is seen in the subsequent lines of the poem.
If the war hadn't happened, how would have the Gita happened?
ReplyDeleteHence, Shri Krishna's purpose was the war.. not peace.
It is ultimately the Gita that we savor more than the whole Mahabharat.. although there are many good gems of wisdom in the whole epic as well..
Peace is state of mind...it do not decide
DeleteWar was subtle..and hense it honoured conclusion
Peace would not have made it
Try this one too:
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/channel/UCBHtPALSbWn0WaRusU9_gFg
https://youtu.be/lESEIvoXvCA
ReplyDeleteWell done my national poet Sri Ramdhari Singh dinker ji
ReplyDeleteAmazing lines ,how great person was national poet Sri Ramdhari Singh dinker ji
ReplyDeleteOutstanding lines by outstanding poet...jai ho🙏
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